जयपुर।जीएसटी दरों में कटौती का ऐलान होते ही देशभर में तालियाँ बज उठीं। टीवी, मोबाइल, फ्रिज और दवाइयाँ सस्ती होंगी, यही वह खबर है जिसे आम आदमी पलभर की राहत मान लेता है। मोदी सरकार को यही चाहिए, आज का हल्का-फुल्का सुख, तुरंत वाहवाही और चुनावी मंच पर गूंजती तालियाँ। लेकिन इस राहत का असली चेहरा कहीं ज्यादा खतरनाक है।
हकीकत यह है कि जीएसटी का पूरा ढांचा चरमराने की कगार पर है। 90 फ़ीसदी वस्तुएँ पहले ही पाँच फ़ीसदी वाले न्यूनतम स्लैब में समा चुकी हैं। यानी टैक्स घटाने की कोई गुंजाइश नहीं बची और टैक्स बढ़ाकर नई आय खड़ी करने का दरवाज़ा भी बंद हो चुका है। सवाल यह है कि जब पूरा बाजार लगभग "टैक्स-फ्री" हो चुका है तो राज्यों का खजाना भरेगा कैसे?
मोदी सरकार की दलील है कि “लक्ज़री आइटम्स” से। गाड़ियों, शराब, सोना-हीरा और महंगे उत्पादों पर 28 से 40 प्रतिशत टैक्स लगाकर घाटे की भरपाई की जाएगा। लेकिन यह महज़ किताबों की जुगलबंदी है। आंकड़े चीख-चीखकर बताते हैं कि इन तमाम लग्ज़री वस्तुओं से जीएसटी कलेक्शन का फ़क़त 7-8 फ़ीसदी हिस्सा आता है। मर्सिडीज़ और ज्वेलरी बेचकर दाल, दूध और दवाओं पर घटाए गए टैक्स की भरपाई? नामुमकिन!
आंकड़ो पर गौर करे तो वर्ष 2024-25 में कुल 20.2 लाख करोड़ का जीएसटी कलेक्शन हुआ । इसमें राज्यों का हिस्सा करीब 10 लाख करोड़ था। अब नई कटौती से यह हिस्सा सीधा 1 से 1.25 लाख करोड़ तक घटने वाला है। इतना भारी घाटा किसी भी "सेस" से नहीं भरा जा सकता। यानी आने वाले समय मे राज्यों का खजाना जो पहले से ही जर्जर है, और ज्यादा पैंदे बैठने वाला है । यानी आने वाले महीनों में राज्यों को सबसे पहले कैंची चलानी होगी, स्कूल, अस्पताल, सड़क और कल्याणकारी योजनाओं पर। यह कटौती सीधे बुनियादी ढांचे को बुरी तरह ध्वस्त कर देगी ।
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि अधिकांश राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं। वे मोदी सरकार के इस फ़ैसले का खुलकर विरोध नहीं कर पाएंगी। दिल्ली से टकराना उनके लिए राजनीतिक आत्महत्या होगी। लेकिन खजाने पर पड़े इस वार से वे बच भी नहीं सकते। नतीजा यह होगा कि चुप्पी में ही जनता पर बोझ मढ़ा जाएगा। आने वाला वक्त हर प्रदेश के लिए आर्थिक तौर पर संक्रमित होने वाला है ।
आज जनता खुश है क्योंकि टीवी, मोबाइल और दवा सस्ती हो गई। लेकिन कल यही जनता जब अस्पतालों में दवाओं की कमी देखेगी, स्कूलों में रुकी योजनाओं से टकराएगी और टूटी सड़कों पर गिरेगी तो यह मिठास जहर साबित होगी। सच यही है कि मोदी सरकार जनता की नब्ज़ पहचान चुकी है। उसे पता है कि आम आदमी को भविष्य की नहीं, सिर्फ़ आज की कीमत की चिंता है। इसलिए सरकार भी वही दे रही है “आज की राहत” और “कल का दिवालियापन।”
तालियाँ आज बज रही हैं, लेकिन कल यही तालियाँ कराह में बदलेंगी। जीएसटी का यह खेल न टिकाऊ है, न ईमानदार । यह सिर्फ़ और सिर्फ़ तात्कालिक चकाचौंध से ज्यादा कुछ नही है । वस्तुओ पर टैक्स घटे, इससे किसी को उज्र नही । लेकिन टेक्स घटाने की आड़ में अपनी वाहवाही के लिए ताली बजवाकर राज्यों के खजाने पर डाका डालना नाइंसाफी है ।

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