महेश झालानी
राजधानी जयपुर का सवाई मानसिंह अस्पताल जो राजस्थान की चिकित्सा व्यवस्था का सबसे बड़ा प्रतीक था, अब अपनी ही अव्यवस्थाओं की लपटों में झुलस गया है। ट्रॉमा सेंटर के आईसीयू में लगी भीषण आग ने न केवल छह से अधिक मरीजों की जान ले ली, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि इस राज्य में “व्यवस्था” अब केवल नाम की रह गई है।
रविवार रात जब यह हादसा हुआ, तब अस्पताल में अफरा-तफरी मच गई। मरीज धुएं में दम घुटने से तड़पते रहे, परिजन दरवाज़े तोड़कर भीतर घुसे, और फायर अलार्म तक नहीं बजे। दमकल देर से पहुंची, स्टाफ असहाय खड़ा रहा, और प्रशासन पूरी तरह लाचार दिखा। आग ने सिर्फ इमारत नहीं, बल्कि सरकार की कार्यक्षमता का चेहरा भी जला दिया।
हादसे के 18 घंटे बाद जब स्वास्थ्य मंत्री घटनास्थल पर पहुंचे, तब तक शव अंतिम संस्कार के लिए जा चुके थे और अस्पताल में सफाई शुरू हो चुकी थी। जनता पूछ रही है कि क्या इस राज्य में “संवेदना” भी अब प्रोटोकॉल का हिस्सा बन गई है? क्या एक मंत्री का मौके पर न पहुँचना भी “रूटीन प्रक्रिया” का हिस्सा माना जाए?
यह पहली बार नहीं है जब स्वास्थ्य विभाग की निष्क्रियता ने लोगों की जान ली हो। पिछले तीन वर्षों में एसएमएस अस्पताल में आग, ऑक्सीजन रिसाव, और उपकरणों की खराबी जैसी घटनाएं दर्ज हुई हैं, लेकिन किसी की जिम्मेदारी तय नहीं हुई। हर बार जांच समिति बनती है, प्रेस नोट जारी होता है, और कुछ दिनों बाद सब भुला दिया जाता है।
राज्य की चिकित्सा व्यवस्था अब “हादसे के बाद बयान, फिर चुप्पी” के चक्र में फँस चुकी है। मंत्रियों और अफसरों की यह ठंडक सरकार की साख को सबसे ज्यादा चोट पहुँचा रही है। जनता के बीच यह संदेश जा चुका है कि संवेदना और जवाबदेही अब सरकारी भाषणों तक सीमित है।
एसएमएस अस्पताल का ढांचा अब अपनी सीमा से बहुत आगे निकल चुका है। बूढ़ी दीवारें, पुरानी वायरिंग, खराब स्प्रिंकलर सिस्टम और डॉक्टरों पर असहनीय दबाव, यह सब मिलकर अस्पताल "टाइम बम"में बदल चुका है । इस आग ने यह सवाल फिर से खड़ा कर दिया है कि आखिर कब तक जयपुर के नागरिक अपनी जान उस व्यवस्था पर सौंपते रहेंगे जो खुद वेंटिलेटर पर है?
जरूरत है कि एसएमएस अस्पताल को अब “रेफरल हॉस्पिटल” घोषित किया जाए, ताकि यह केवल गंभीर और जटिल मरीजों का इलाज करे। सामान्य बीमारियों के लिए शहर के विभिन्न इलाकों में यथा आगरा रोड, सीकर रोड, झोटवाड़ा, मानसरोवर, जगतपुरा, अजमेर रोड और सोडाला आदि में जयपुरिया अस्पताल की तर्ज पर आधुनिक सरकारी अस्पताल खोले जाएं। जयपुरिया अस्पताल ने सीमित संसाधनों के बावजूद सेवा का जो मॉडल प्रस्तुत किया है, वही अब राजधानी के लिए जीवनरेखा बन सकता है।
साथ ही यह भी अनिवार्य है कि टीबी अस्पताल, जिसे कभी शहर से दूर इसलिए बनाया गया था ताकि संक्रमण न फैले, अब शहर के बीचोंबीच आ चुका है। यह अब चारों तरफ रिहायशी इलाकों से घिरा है । जो न केवल असुरक्षित है बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बन चुका है। इसे शहर से बाहर स्थानांतरित कर वहीं एक नया सुपर स्पेशलिटी अस्पताल बनाया जाना चाहिए, ताकि जयपुर के मध्य भाग में एक नई, सुसज्जित चिकित्सा सुविधा विकसित हो सके।
सरकार को यह समझना होगा कि स्वास्थ्य केवल इलाज का नहीं, बल्कि संवेदनशीलता और जवाबदेही का भी विषय है। जब मंत्री, अधिकारी और सिस्टम घटनाओं के बाद भी निष्क्रिय बने रहते हैं, तो जनता के मन में भरोसा मर जाता है। और भरोसा, किसी भी लोकतंत्र की सबसे बड़ी पूंजी होती है। यह हादसा केवल आग का नहीं, बल्कि एक चेतावनी का प्रतीक है । अगर अब भी प्रशासनिक नींद नहीं टूटी, तो अगली आग केवल अस्पताल की दीवारें नहीं, बल्कि सरकार की साख भी राख कर देगी।

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