जयपुर।राजस्थान की राजनीति में कांग्रेस आज विपक्ष की भूमिका निभाने के बजाय अपनी ही कब्र खोदने में जुटी दिखाई देती है। विधानसभा में 69 विधायकों के साथ उसका संख्या-बल कम नहीं है, लेकिन फिर भी जनता उसे एक मजबूत विकल्प मानने को तैयार नहीं। वजह साफ है, पिछले कार्यकाल में सत्ता की मलाई चखते-चखते कांग्रेस ने अपनी नैतिक ताक़त खो दी और अब विपक्ष में बैठकर वह सरकार को घेरने की स्थिति में नहीं है।
गहलोत सरकार के दौर में पेपर-लीक से लेकर जल जीवन मिशन और खनन तक घोटालों की लंबी परंपरा रही। “रेड डायरी” विवाद ने कांग्रेस की छवि को और ध्वस्त कर दिया। यही कारण है कि आज जब कांग्रेस सवाल उठाने की कोशिश करती है तो सत्ता पक्ष पलटकर यही कह देता है कि भ्रष्टाचार तो उनके शासन में हुआ था। इस कटु सत्य से बचने का कोई रास्ता कांग्रेस के पास नहीं है। ऐसे में बेचारी कांग्रेस के पास चुप बैठने के अलावा कोई विकल्प नही रह जाता है ।
हालात और ज्यादा गंभीर तब हो जाते है जब पार्टी के भीतर गुटबाज़ी की हकीकत सामने आती है। गहलोत–पायलट संघर्ष ने संगठन की रीढ़ तोड़ दी। विपक्ष का नेता तय करने तक में खींचतान और असंतोष देखने को मिला। विधायकों के बीच एकजुटता का अभाव और कार्यकर्ताओं में निराशा साफ झलकती है। विपक्ष का काम जनता के मुद्दे उठाना होता है, लेकिन कांग्रेस का बड़ा हिस्सा आपसी खींचतान और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं में उलझा हुआ है। यही वजह है कि कार्यकर्ताओ का मनोबल पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है । इसलिए कांग्रेस के सभी कार्यक्रम रस्म अदायगी साबित हो रहे है ।
इन हालातों में कांग्रेस एक ऐसी नाव बनकर रह गई है जिसका कोई कप्तान ही नहीं। केंद्रीय नेतृत्व पूरी तरह उदासीन है। प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा मानो आंख मूंदकर सोये पड़े हैं। न वे संगठनात्मक बिखराव पर लगाम कस पा रहे हैं, न ही विपक्ष को सड़क से सदन तक आक्रामक बना पा रहे हैं। प्रदेश नेतृत्व भी गुटबाज़ी और पदलोलुपता में फंसा है। ऐसे में इस पार्टी का भगवान ही मालिक है ।
विधानसभा में कांग्रेस की भूमिका महज़ रस्म अदायगी बनकर रह गई है। वॉकआउट और धरनों से आगे वह कोई ठोस रणनीति पेश नहीं कर पा रही। न तो वैकल्पिक नीतिगत दृष्टि सामने रखी जा रही है, न ही जनता को भरोसा दिलाने वाला कोई रोडमैप। सड़क पर प्रदर्शन भी महज़ औपचारिकता भर हैं। परिणाम यह है कि जनता कांग्रेस को विपक्ष नहीं, बल्कि बेबस दर्शक मान रही है।
पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष के नाते गोविंदसिंह डोटासरा की यह जिम्मेदारी है कि उन्हें “गमछा डांस” के बजाय निराश हो चुके कार्यकर्ताओ में जान फूंकनी होगी । टीकाराम जूली उम्मीद से बेहतर विपक्ष के नेता साबित हुए है । विपक्ष के नेता को नतमस्तक होने के बजाय आक्रमक होने की जरूरत है । इसके अलावा जूली का होमवर्क बहुत ही सतही है । इसी वजह से सरकार को कठघरे में खड़ा नही कर पाते है ।
इस सच्चाई से कोई इनकार नही कर सकता है कि राजस्थान में कांग्रेस दिन-ब-दिन कमजोर होती जा रही है। जनता और कार्यकर्ता दोनों यह महसूस कर रहे हैं कि पार्टी का कोई धनी-धोरी नहीं है। सत्ता का मोह, घोटालों का बोझ, गुटबाज़ी और नेतृत्वहीनता ने कांग्रेस को लगभग निर्जीव बना दिया है। हाल यही रहे तो आने वाले समय में कांग्रेस का राजनीतिक विसर्जन होना अब केवल वक्त की बात है। कुल मिलाकर कांग्रेस विपक्ष की नहीं, बल्कि अपनी ही मय्यत की तैयारी करती पार्टी बन चुकी है।
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| लेखक :- वरिष्ठ पत्रकार महेश झालानी |
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