जयपुर ।विधानसभा सत्र नज़दीक है और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सरकार अपने ही मंत्रियों की करतूतों और नाकामी की वजह से घिरती जा रही है। प्रचंड बहुमत से बनी सरकार की यह स्थिति विपक्ष के लिए तोहफ़ा साबित हो रही है। सवाल उठ रहा है कि मुख्यमंत्री अपने मंत्रियों की इस गिरफ़्त को कब तक ढोते रहेंगे । सवाल यह भी है कि क्या मुख्यमंत्री सत्र से पहले मंत्रिमंडल का चेहरा बदल पाएंगे?
सरकार की अन्य कई मुसीबतों में सबसे बड़ी सिरदर्दी अब भी कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ही हैं। इस्तीफे का ऐलान कर चुके किरोड़ी ने अब तक साफ नहीं किया है कि उन्होंने पद छोड़ा है या वापसी की है। उनकी कार्यशैली और बेबाक तेवर ने उन्हें पार्टी के भीतर समानांतर शक्ति केंद्र बना दिया है। संगठन की चिंता यह है कि अगर उन्हें और मज़बूत किया गया तो वे मुख्यमंत्री पर हावी हो जाएंगे। चर्चा जोरों पर है कि प्रेमचन्द बैरवा का साफ करते हुए किरोड़ी बाबा को डिप्टी सीएम बनाया जा सकता है ।
ऐसे में दोनों ही बाते हो सकती है । डिप्टी सीएम बनने के बाद वे भजनलाल शर्मा पर हावी होने की कोशिश करे । दूसरी बात यह भी है कि डिप्टी सीएम बनने के बाद उनकी नाराजगी दूर हो जाए । इससे कोई असहमत नही हो सकता है कि पूरे मंत्रिमंडल में वे सबसे वरिष्ठ, अनुभवी और संकटमोचक है । जैसे ही उन्हें कृषि जैसा सामान्य महकमा मिला, उनका तेवर आक्रामक होगया । इसी के चलते उन्होंने मंत्री पद से ही इस्तीफा दे दिया । उनकी सबसे बड़ी नाराजगी की वजह यह भी है कि उन्हें न तो मंत्रीगण कोई अहमियत दे रहे है और न ही अदने से अफसर ।
राजपूत खेमे की तकरार भी अब जगजाहिर हो चुकी है । दीया कुमारी और राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के बीच के टकराव गूंज दिल्ली तक पहुंच चुकी है । दोनों राजपूत चेहरे एक-दूसरे को काटने में लगे हैं और इसका सीधा असर न केवल सरकार की एकजुटता पर पड़ रहा है बल्कि वोट बैंक भी असहज हो रहा है। दीया कुमारी के पास अहम विभाग हैं, लेकिन ठोस काम का अभाव है, वहीं राठौर की छवि अब तक ‘फोटो-ऑप मंत्री’ से आगे नहीं बढ़ सकी है।
जाट समाज को साधने के लिए बने मंत्री झाबर सिंह खर्रा (नगरीय विकास) और कन्हैया लाल चौधरी (जलदाय) अपने विभाग संभालने में नाकाम साबित हो रहे हैं। इसी तरह सुमित गोदारा भी “फिलर” की भूमिका अदा कर रहे है । खर्रा की ढिलाई से नगरीय विकास विभाग की योजनाएं पटरी से उतर गई हैं, जबकि कन्हैया लाल की हरकतों ने कई बार सरकार को शर्मसार किया है। इनकी टेंडर बाजी महेश जोशी के रास्ते पर नही ले जाए । कन्हैयालाल बददिमाग होने के साथ साथ लेनदेन के माहिर खिलाड़ी बताए जाते है ।
संसदीय कार्य मंत्री जोगाराम पटेल के बाद अब गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेडम पर भी आरोप है कि वे अपने को ‘मिनी सीएम’ मानते हैं। भरतपुर जिले के नगर विधानसभा से जीतकर आए बेडम मुख्यमंत्री के क्षेत्र से ताल्लुक रखने का रौब दिखाते हैं और पुलिस-प्रशासन पर मनमानी थोपने के लिए बदनाम हो चुके हैं। जोगाराम का व्यवहार से पार्टी के विधायक बहुत ही आहत है । कार्य को टालने में वे सिद्धस्त माने जाते है और उनका व्यवहार किसी सीएम से कम नही है ।
चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह की उदासीनता ने पूरे विभाग का भट्टा बैठा दिया है। गहलोत सरकार की शुरू की गई आरजीएचएस योजना दम तोड़ती नज़र आ रही है। सरकारी कर्मचारियों के लिए बनी इस स्वास्थ्य बीमा योजना में भ्रष्टाचार ने सबसे गहरा सेंध मारा है। डॉक्टर से लेकर अस्पताल और मेडिकल स्टोर तक, सबकी मिलीभगत से यह योजना भ्रष्टाचार का अड्डा बन गई है। विभागीय अधिकारियों की सांठगांठ से करोड़ों के घोटाले खुलेआम हो रहे हैं और मंत्री सिर्फ मूकदर्शक बने बैठे हैं। विपक्ष इस मुद्दे को विधानसभा में उठाने की तैयारी कर चुका है। कुर्सी बचाने के लिए जिन हथकंडो का गहलोत ने इस्तेमाल किया, इससे उनकी छवि पर प्रतिकूल असर पड़ा । लेकिन अन्य कई महत्वपूर्ण योजनाओ में अरजीएचएस भी शुमार है । चिकित्सा मंत्री “पटेलाई” बीजेपी को कब्रिस्तान में पहुँचाने का माद्दा रखती है । कमोबेश यही हाल आरजेएचएस योजना का है । डीआईपीआर का कोई धणी धोरी नही होने के कारण समय से पहले यह दम तोड़ती नजर आ रही है ।
भाजपा संगठन के भीतर इन हालात पर गुस्सा साफ झलक रहा है। विधायक खुलकर भले न बोलें, लेकिन भीतर ही भीतर नाराज़गी उबल रही है। राजनीतिक नियुक्तियां नही होने से पार्टी में जबरदस्त उबाल है । बीजेपी को राजेन्द्र राठौड़ और सतीश पूनिया जैसे नेताओं के तजुर्बे का इस्तेमाल करना चाहिए । पराजित होने से किसी व्यक्ति की योग्यता समाप्त नही हो जाती है । इस तथ्य को न भजनलाल को भूलना चाहिए न ही आलाकमान को । उधर कई मंत्री खुद को ‘छोटा मुख्यमंत्री’ साबित करने में जुटे हैं, तो कुछ विभागीय नाकामी से जनता को मुसीबत में डाल रहे हैं।
सत्र से पहले सबसे बड़ा इम्तिहान
विधानसभा सत्र में विपक्ष सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ेगा। खैरथल जिले का मुख्यालय बदलने सहित कई मुद्दों को लेकर विपक्ष सरकार पर जबरदस्त प्रहार करने से नही चूकेगा । अगर मुख्यमंत्री ने सत्र से पहले मंत्रिमंडल का पुनर्गठन नहीं किया, तो सरकार की किरकिरी होना तय है। भजनलाल के लिए यह सत्र केवल विपक्ष से लड़ाई नहीं, बल्कि अपनी ही टीम की नाकामी और मनमानी को बचाने की सबसे कठिन जंग होगी।
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| लेखक:- वरिष्ठ पत्रकार महेश झालानी |


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