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उपराष्ट्रपति के 'न्यूक्लियर मिसाइल' बयान पर कपिल सिब्बल का तीखा प्रहार – याद दिलाया 1975 का सुप्रीम कोर्ट फैसला


राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की हालिया टिप्पणियों को लेकर गहरी नाराजगी जताई है। धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों पर सवाल उठाते हुए अनुच्छेद 142 को लोकतांत्रिक संस्थाओं के खिलाफ "न्यूक्लियर मिसाइल" जैसा करार दिया था। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सिब्बल ने कहा कि उपराष्ट्रपति का यह बयान न केवल असंवैधानिक है, बल्कि उनकी संवैधानिक भूमिका की मर्यादा के भी खिलाफ है।

"उपराष्ट्रपति को रहना चाहिए राजनीति से परे" – सिब्बल

सिब्बल ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा, "राज्यसभा का सभापति सदन का संरक्षक होता है, किसी राजनीतिक दल का प्रवक्ता नहीं। उनका दायित्व विपक्ष और सत्ता दोनों के प्रति समान दूरी बनाए रखना है।" उन्होंने कहा कि संसदीय परंपरा में कभी किसी सभापति को इस तरह का सीधा राजनीतिक बयान देते नहीं देखा गया है।

1975 की मिसाल – इंदिरा गांधी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का फैसला

अपने तर्क को मजबूत करने के लिए सिब्बल ने 1975 की घटना का उल्लेख किया, जब सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया था। उन्होंने याद दिलाया कि वह फैसला सिर्फ एक न्यायाधीश – जस्टिस कृष्ण अय्यर – ने सुनाया था, फिर भी सरकार ने उस निर्णय को स्वीकार किया। "अब जब दो जजों की बेंच सरकार के खिलाफ फैसला देती है, तो उस पर सवाल उठाए जा रहे हैं," उन्होंने कहा।

"न्यायपालिका पर सार्वजनिक टिप्पणी दुर्भाग्यपूर्ण"

सिब्बल ने न्यायपालिका पर सार्वजनिक रूप से टिप्पणी करने की धनखड़ की प्रवृत्ति को खतरनाक बताया। उन्होंने कहा, "उपराष्ट्रपति को समझना चाहिए कि राष्ट्रपति एक नाममात्र के प्रमुख हैं, वे कैबिनेट की सलाह पर काम करते हैं। असल शक्ति संविधान और न्यायपालिका के बीच संतुलन में है।"

धनखड़ का बयान – क्या कहा था उपराष्ट्रपति ने?

गुरुवार को उपराष्ट्रपति ने राज्यसभा के प्रशिक्षु अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा था कि "हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां आप भारत के राष्ट्रपति को आदेश दें।" उन्होंने अनुच्छेद 142 को लेकर चिंता जताई और कहा कि यह न्यायपालिका को 24x7 उपलब्ध एक 'न्यूक्लियर मिसाइल' बन गया है, जिसका उपयोग लोकतांत्रिक संस्थाओं पर प्रभाव डालने के लिए किया जा सकता है।

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